PM Kisan Yojana : किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए केंद्र सरकार कई तरह की योजना चला रही है, जिसके तहत किसानों कई तरह की आर्थिक सहायता दी जाती है। इसी क्रम में सरकार ने शलजम की खेती के सब्सिडी की घोषणा की है। बता दें कि शलजम की खेती से कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा होता है। सरकार की ओर से किसानों को इसकी खेती के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।
शलजम क्या है और इसकी खासियत क्या है?
शलजम का वानस्पतिक नाम क्रूसीफेरी या ब्रैसिकेसी है। इसकी जड़ गांठदार होती है जिसका उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। आम भाषा में शलजम एक जड़ वाली सब्जी है, जो आमतौर पर समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। सबसे आम प्रकार के शलजम में ऊपरी 1 से 6 सेंटीमीटर को छोड़कर सफेद छिलका होता है, जहां सूरज की रोशनी पड़ती है, यह बैंगनी, लाल या हरे रंग का होता है और अंदर का गूदा पूरी तरह से सफेद होता है। शलजम की पूरी जड़ लगभग गोलाकार होती है, जिसका व्यास लगभग 5 से 20 सेंटीमीटर होता है और इसमें साइड रूट्स की कमी होती है। शलजम की कुछ जड़ें लंबी, कुछ गोल, कुछ चपटी और कुछ कप के आकार की होती हैं। कुछ प्रकार के शलजम का गूदा सफेद और कुछ का पीला होता है। शलजम का वर्गीकरण इसकी जड़ के आकार या जड़ के ऊपरी हिस्से के रंग के आधार पर किया जाता है। भारत में ऊपर बताए गए सभी प्रकार के शलजम उगाए जाते हैं।
सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है शलजम :
शलजम का सेवन सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। शलजम का इस्तेमाल सब्जी या सलाद के तौर पर किया जाता है। इसकी जड़ मोटी होती है, जिसे पकाकर खाया जाता है। इसके साथ ही इसके पत्तों को साग के तौर पर भी खाया जाता है। यह पशुओं के लिए एक बहुमूल्य चारा है। इसकी खेती सब्जी और पशुओं के चारे दोनों ही कामों के लिए की जाती है। शलजम को औषधीय गुणों की खान माना जाता है। यह एक ऐसा सब्जी (कंद) है जिसके सेवन शरीर में कई पोषक तत्वों की कमी दूर होती है।
कई बीमारियों के लिए रामबाण है शलजम :
इसमें विटामिन सी, विटामिन के, बीटा कैरोटीन और पोटैशियम जैसे गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं जैसे वायरल इंफेक्शन, सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द आदि मौसमी संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह मधुमेह, हड्डियों और मांसपेशियों, हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप और सूजन से भी बचाने में मदद करता है, साथ ही एंटीऑक्सीडेंट रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने का काम करते हैं। आप शलजम का इस्तेमाल जूस और सलाद के तौर पर अपनी डाइट में कर सकते हैं। शलजम में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो सेहत के साथ-साथ त्वचा के लिए भी अच्छे माने जाते हैं।

कैसे करें शलजम की खेती ?
जलवायु और तापमान:
शलजम आमतौर पर समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह ठंडे मौसम की फसल है। शलजम की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। ठंडी जलवायु में इसकी पैदावार अच्छी होती है। इसके लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु आदि भारत के प्रमुख शलजम उत्पादक राज्य हैं।
भूमि का चयन:
इसे कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन शलजम दोमट, रेतीली और रेतीली मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो, उसमें उगाने पर अच्छे परिणाम मिलते हैं। अगर आपके खेत की मिट्टी चिकनी और सख्त है, तो शलजम की फसल अच्छी नहीं होगी, क्योंकि यह जड़ वाली फसल है। यानी यह जमीन के अंदर उगने वाली फसल है। इसलिए भारी, घनी या हल्की मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें क्योंकि इससे विकृत जड़ें पैदा होती हैं। अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.8 होना चाहिए।
खेत की तैयारी:
शलजम की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए खेत को भुरभुरा बनाना चाहिए। इसके लिए पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। पहली गहरी जुताई करने के बाद खेत में प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल प्राकृतिक गोबर की खाद या जैविक वर्मीकम्पोस्ट डालें। इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से 3 से 4 बार जुताई करके खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश देना चाहिए। अंतिम जुताई में फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा खड़ी फसल को दो बार में देनी चाहिए। पहली आधी मात्रा पौधों पर 4 से 5 पत्तियां आने पर देनी चाहिए और शेष मात्रा फलों के विकास के समय देनी चाहिए।
उन्नत किस्में:
पूसा श्वेती, पूसा कंचन, लाल 4, सफेद 4, टर्निप एल-1, पंजाब सफेद 4, गोल्डन, पर्पल टाइप सफेद ग्लोब, स्नोबॉल, पूसा चंद्रमा, पूसा स्वर्णिम आदि प्रमुख हैं।
केंद्र सरकार दे रही मदद:
दूसरी किस्म 60 दिन में तैयार हो जाती है। अगस्त माह में इसकी खेती की जा सकती है। इससे किसानों को अच्छी आमदनी होती है। खुले बाजार में इसकी कीमत 2200 से 2300 प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती है। कम बारिश के बीच किसान इसे अधिक आमदनी वाली फसल के रूप में अपना सकते हैं। शुरुआत में इस साल कुछ इलाकों में इसकी खेती की जाएगी। डॉक्टरों के अनुसार यह हृदय रोग और ब्लड प्रेशर में फायदेमंद है। यह किडनी, लीवर और फेफड़ों को भी स्वस्थ रखता है। किसान इसकी खेती को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाले विकल्प के रूप में अपना सकते हैं।